भारत में जजों को कैसे संबोधित करें- 'योर ऑनर' या 'माई लॉर्ड'?
भारत में जजों को कैसे संबोधित करें- 'योर ऑनर' या 'माई लॉर्ड'?
13 अगस्त 2020 को सुप्रीम कोर्ट मे चीफ जस्टिस एसए बोबडे और एक वकील के बीच रोचक बातचीत हुई। विषय था कि अदालत को कैसे संबोधित किया जाए। सीजेआई की अध्यक्षता में पीठ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए एक मामलों की सुनवाई कर रही थी, जिसमें एक वकील ने उन्हें संबोधित किया, 'योर ऑनर'। जिस पर सीजेआई बोबडे ने पूछा, "क्या आप अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में हैं?", सीजेआई के अनुसार, 'योर ऑनर' का प्रयोग भारतीय नहीं, बल्कि अमेरिकी है। वकील ने दलील दी कि कानून में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे यह तय हो कि वकील अदालत को कैसे संबोधित करे। सीजेआई ने कहा, यह अदालत की प्रैक्टिस का मामला है।
'माई लॉर्ड', 'योर लॉर्डशिप' अनिवार्य नहीं, गरिमापूर्ण और सम्मानजनक संबोधन का प्रयोग करें 6 जनवरी 2014 को, सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने, जिसमें तत्कालीन सीजेआई जस्टिस एचएल दत्तू और एसए बोबडे शामिल थे, एक वकील, शिव सागर तिवारी की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की थी और खारिज कर दिया। याचिका में 'माई लॉर्ड' और 'योर लॉर्डशिप' शब्दों का प्रयोग करने पर प्रतिबंध की मांग की गई थी । उनकी दलील थी कि ये शब्द गुलामी के प्रतीक हैं। न्यायालयों में इनके इस्तेमाल पर सख्ती से रोक लगाई जानी चाहिए।''
बेंच ने बिना कारण स्पष्ट किए याचिका रद्द की थी और वकील से कहा था, "हमने कब कहा कि यह अनिवार्य है। आप हमें सम्मानजनक तरीके से बुला सकते हैं ... अदालत के संबोधन के रूप में हम यही चाहते हैं। संबोधित करने का मात्र सम्मानजनक तरीका। आप हमें (न्यायाधीशों को) सर कहें, यह स्वीकार है। आप योर ऑनर कहते हैं, यह स्वीकार किया जाता है। आप योर लॉर्डशिप कहते हैं, यह स्वीकार किया जाता है। ये अभिव्यक्ति के उचित तरीके हैं, जिन्हें स्वीकार किया जाता है।"
बीसीआई के नियम
6 मई 2006 को बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने गैजेट में अपना रिजॉल्यूशन प्रकाशित किया थाए जिसकी प्रति नीचे दी जा रही है।
सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में "योर ऑनर" या "ऑनरेबल कोर्ट', और अधीनस्थ न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में सर या अपनी स्थानीय भाषाओं के समकक्ष सम्मानजनक शब्द कहने का विकल्प वकीलों के लिए खुला है।" स्पष्टीकरण: जैसा कि "माई लॉर्ड" और "योर लॉर्डशिप" शब्द औपनिवेशिक काल के अवशेष हैं, न्यायालय के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उपरोक्त नियम को शामिल करने का प्रस्ताव दिया जाता है।
इस प्रकार रूल [पार्ट VI, चेप्टर IIIA ऑफ बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स] सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में "योर ऑनर" या "योर लॉर्डशिप" शब्द का प्रयोग करने और अधीनस्थ न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में 'सर' या 'समकक्ष सम्मानजनक शब्द' का प्रयोक करने की सिफारिश करता है।
स्पष्टीकरण आगे कहता है कि कि "माई लॉर्ड" और "योर लॉर्डशिप" शब्द औपनिवेशिक काल के अवशेष हैं। उपरोक्त नियम से यह स्पष्ट है कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने "माई लॉर्ड" और "योर लॉर्डशिप" के प्रयोग को अस्वीकार कर दिया है और "योर ऑनर" या "माई लॉर्डशिप" या "सर" के प्रयोग का निर्धारण किया है। रोचक बात यह है कि यह प्रस्ताव बार काउंसिल ने प्रोग्रेसिव एंड विजिलांट लॉयर्स फोरम की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों पर विचार करने के बाद पारित किया।
हालांकि, इस जनहित याचिका पर 6 जनवरी 2006 को पारित निर्णय/ आदेश, जिसमें याचिका को खारिज़ कर दिया गया था, प्राप्त नहीं किया जा सका। माना जाता है कि न्यायालय ने यह देखते हुए जनहित याचिका को खारिज कर दिया था कि यह बीसीआई द्वारा तय किया जाना था कि न्यायाधीशों को कैसे संबोधित किया जाना चाहिए। इसके बाद, 2007 में, केरल हाईकोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन ने सर्वसम्मति से जजों को 'माई लॉर्ड' या 'योर लॉर्डशिप' के रूप में संबोधित न करने का संकल्प लिया था।
कई जजों ने 'माई लॉर्ड' या 'योर लॉर्डशिप' का प्रयोग न करने का अनुरोध किया
मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के चंद्रू ने 2009 में वकीलों को 'माई लॉर्ड' का उपयोग करने से परहेज करने के लिए कहा था। इसी साल की शुरुआत में, न्यायमूर्ति एस मुरलीधर ने वकीलों से औपचारिक रूप से अनुरोध किया था कि वे उन्हें 'माई लॉर्ड' या 'योर लॉर्डशिप' के रूप में संबोधित करने से बचें।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश थोट्टाथिल बी नैयर राधाकृष्णन ने रजिस्ट्री के सदस्यों सहित जिला न्यायपालिका के अधिकारियों को पत्र लिखकर "माई लॉर्ड" या "लॉर्ड्सशिप" के बजाय "सर" के रूप में संबोधित किए जाने की इच्छा व्यक्त की थी। पिछले साल, राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक नोटिस जारी कर जजों को 'माई लॉर्ड' या 'योर लॉर्डशिप' के रूप में संबोधित करने से मना किया था। 14 जुलाई को हुई एक बैठक में पूर्ण न्यायालय द्वारा पारित एक सर्वसम्मत प्रस्ताव के बाद यह नोटिस जारी किया गया था। संविधान में निहित समानता की भावना का सम्मान करने के लिए ऐसा कदम उठाया गया था।
वकीलों दलीलों में भी 'योर लॉर्डशिप' का इस्तेमाल करते हैं
हालांकि, 'योर लॉर्डशिप' सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को संबोधित करने का एक सामान्य तरीका है, भले ही बीसीआई का नियम इसे अस्वीकृत कर चुका हो, लेकिन वकीलों के बीच रिट याचिकाओं के आग्रह के हिस्सों में 'योर लॉर्डशिप' का उपयोग करने का चलन है। कुछ उच्च न्यायालयों में इस तरह की प्रवृत्ति देखी जाती है।
अंतर्राष्ट्रीय तरीका
वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे पिछले साल अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में पेश हुए और उपलब्ध ट्रांसक्रिप्ट के अनुसार, यह देखा गया कि उन्होंने अदालत को ज्यादातर 'माननीय राष्ट्रपति और सम्माननीय न्यायाधीशों' के रूप में संबोधित किया था। 'माई लॉर्ड' या 'लॉर्ड्सशिप' जैसे शब्दों का कोई उपयोग नहीं किया गया था। जैसा कि मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा था कि 'योर ऑनर' का इस्तेमाल आज भी संयुक्त राज्य अमेरिका की सर्वोच्च न्यायालय में प्रचलित है।
उदाहरण के लिए, स्कोटस पोर्टल पर अपलोड की गई लिटिल सिस्टर ऑफ पुअर वर्सेस पेंसिल्वेनिया के मामले की बहसों को संदर्भित किया जा सकता है। जनरल फ्रांसिस्को ने कोर्ट को 'मिस्टर चीफ जस्टिस' और 'मे इट प्लीज़ द कोर्ट' जैसे संबोधनों से संबोधित किया था। 'ऑनर' शब्द का प्रयोग 45 बार था। ट्रम्प वर्सेस वेंस की सुनवाई में, 60 बार 'ऑनर' शब्द का इस्तेमाल किया गया था। ऑस्ट्रेलियाई हाईकोर्ट ने खुद ही अपने जजों को संबोधित करने का तरीका बताया है। कोर्ट ने कहा कि बेंचों की जब जज बेंच की अध्यक्षता कर रहे हो तो उन्हें 'योर ऑनर' कहा जाना चाहिए। संघीय न्यायालय के न्यायाधीशों को भी 'योर ऑनर' के रूप में संबोधित किया जाना चाहिए।
यूनाइटेड किंगडम के न्याय विभाग के एक आधिकारिक वेब पोर्टल Judiciary.uk में न्यायपालिका के सदस्यों को संबोधित करने के विभिन्न तरीकों का वर्णन किया गया है। इसमें कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय, अपीलीय अदालत, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को 'माई लॉर्ड' या 'माई लेडी' के रूप में संबोधित किया जाना चाहिए। सर्किट जजों को 'योर ऑनर' और जिला जजों और मजिस्ट्रेटों और अन्य जजों को 'सर या मैडम' के रूप में संबोधित किया जाना चाहिए। इतालवी अदालतों में, जज को मिस्टर प्रेसिडेंट ऑफ कोर्ट के रूप में संबोधित किया जाता है। सऊदी अरब में क़ाज़ी, स्पेन में सु सेनोरिया (योर ऑनर) के रूप में संबोधित किया जाता है। जर्मनी में पुरुष जजों को हेर्र वोर्सितजेंडर (मिस्टर चेयरमैन ) और महिला जजों को फ्राउ वोर्सितजेन्दे (मैडम चेयरमैन) के रूप में के रूप में संबोधित किया जाता है।
लाहौर हाईकोर्ट ने खारिज़ की थी एक वकील की याचिका पाकिस्तान और भारत में अदालती संबोधनों का चलन कमोबेश एक जैसा ही है। एक वकील मलिक अल्लाह यार खान ने 2012 में लाहौर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें मांग की थी कि यह घोषणा की जाए कि किसी को 'योर लॉर्डशिप' और 'माई लॉर्ड' के रूप में एक जज को संबोधित करने की अनुमति नहीं है। उनकी दलील थी कि ऐसे संबोधन ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रणाली का हिस्सा हैं और यह इस्लाम विरोधी है क्योंकि एकमात्र ईश्वर सर्वशक्तिमान है और कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यक्ति का भगवान नहीं हो सकता है।
याचिका की सुनवाई में जस्टिस नासिर सईद शेख ने कहा था कि किसी भी अदालत या जज ने कभी एसे आदेश, निर्देश या अनुदेश जारी नहीं किए कि जजों को 'माई लॉर्ड' या 'योर लॉर्डशिप' जैसे शब्दों से संबोधित किया जाए। जज ने 'लॉर्ड' शब्द के अर्थों का उल्लेख करते हुए कहा कि अंग्रेजी न्यायिक प्रणाली में "माई लॉर्ड" या "योर लॉर्डशिप" का प्रयोग न्यायिक अधिकारियों की उदारता और क्षमता और ज्ञान को मान्यता देने के लिए किया जाता है। किसी भी किताब में ऐसे संकेत नहीं हैं माननीय न्यायाधीश जिन्हें "माई लॉर्ड" या "योर लॉर्डशिप" शीर्षक से संबोधित किया जाता है, उन्हें ईश्वरीय गुणों से युक्त माना जाता है।
याचिकाकर्ता के सुझाव की 'सर' शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, पर अदालत ने कहा था कि 'सर' शब्द भी औपनिवेशिक आशययुक्त है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा न्यायाधीशों के समक्ष वकीलों द्वारा सिर झुकाने की प्रथा के खिलाफ उठाई गई आपत्तियों को भी खारिज कर दिया। न्यायालय ने जजों की सीटों को ऊंचाई पर रखने के खिलाफ उठाई गई आपत्ति को भी खारिज कर दिया और कहा कि यह न्यायालयों के अधिकार के प्रतीकात्मक प्रदर्शन के लिए है। लाहौर हाईकोर्ट ने उक्त याचिका को खारिज़ कर दिया था।
'योर ऑनर' ठीक है
कई देशों में जजों को संबोधित करने के लिए 'योर ऑनर' शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। यूनाइटेड किंगडम और कुछ अन्य देशों में 'माई लॉर्ड' और 'योर लॉर्डशिप' शब्द का उपयोग भी किया जाता है। हालांकि, भारत में 'माई लॉर्ड' और 'योर लॉर्डशिप' के उपयोग पर कोई कानूनी रोक नहीं है, लेकिन बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा 'योर ऑनर' के प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए और न्यायालयों और न्यायाधीशों को हिचकिचाने वाले वकीलों को प्रोत्साहित करना चाहिए। वकीलों को यह महसूस कराया जाना चाहिए कि न्यायालयों और न्यायाधीशों को खुश करने के लिए ऐसे औपनिवेशिक शीर्षकों का प्रयोग करना आवश्यक नहीं है।
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